Vipassana
विपश्यना संकल्प का मार्ग है। यह भारत की बहुत पुरानी विद्या है, पर लोगों को नयी नयी सी मालूम होती है।
ये विद्या बार-बार भारत मे जागी है, और न केवल भारत के लोगो का बल्कि पूरे विश्व के लोगो का कल्याण की है।
विपश्यना जो जैसा है उसे वैसा ही देखने की विद्या है। विपश्यना भीतर की सच्चाई को जानने के लिए है। मन के गहराइयो में जाकर मन के विकारो को निकाल दे, ये सारा रास्ता इसी के लिए है।
साधना के दौरान 'होश बना रहे' इस विद्या को सीखने की इकाई है। धैर्य, सजगता, निरंतरता आदि विद्या सीखने में बहुत सहायक है।
मनुष्य विकार जगाता है और व्याकुल हो जाता है वह अपने आप को विकार से दूर रखने के लिए कोई अच्छी बात को मानने लगता है, उसका अनुसरण भी करता है। पर किसी अच्छी बात को मानने से बस ऊपर ऊपर की सफाई होती, गहराई में स्वभाव वैसा ही रहता है।
अपने अंदर की क्या सच्चाई है उसको अनुभूतियों से जाने और जानते-जानते अपने विकार-युक्त स्वभाव को पलटने लगे, इस प्रकार अपने विकारो को जड़ो से निकलने लगे.. यही विपश्यना है, और यही करना है।
इसके लिए स्वयं काम करना होगा, इस मार्ग पर स्वयं चलना होगा।
ऐसा जाने की प्यास खुद को लगी है और पानी कोई और पी ले, ऐसे में खुद की प्यास कैसे बुझेगी?
ये विद्या आज भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के अनेक विपश्यना केन्द्रो में सिखाई जाती है।
मन को निर्मल बनाने के लिए इस विद्या को ठीक तरीके से समझना बहुत ज़रूरी है, ठीक से समझेंगे नहीं और मेहनत भी करेंगे तो लाभ नहीं होगा।
मनुष्य अपने शरीर पर होने वाली संवेदनाओ के आधार पर राग या द्वेष जगाता है।
शिविर के दस(10) दिन हम अपनी परम्परा, दार्शनिक-मान्यता, कल्पनाओ को अलग रख केवल अपनी सांस का सहारा लेकर साधना व विपश्यना सीखते है।
साँस आ रहा है तो कोई ये नहीं कहता की साँस और-चाहिए और-चाहिए, इस प्रकार आती हुई सांस के प्रति कोई राग नहीं जगाता, ठीक इसी प्रकार जाती हुई साँस के प्रति द्वेष नहीं जगाता की जल्दी-जा जल्दी-जा नहीं चाहिए। साँस निर्मल है इसीलिए साँस का सहारा
दस दिन के इस शिविर में बहुत अच्छे से इस विद्या को सीखें।
विपश्यना वास्तव में तभी मूल्यवान है जब इससे आपके जीवन में परिवर्तन आये, और यह परिवर्तन तब ही आएगा जब आप इसका दैनिक अभ्यास करना जारी रखेंगे।
आर्य-मौन क्या है ?
शरीर, वाणी व मन से मौन रहना आर्य-मौन है।साधना को गंभीरता से सीखने के लिए आर्य-मौन का पालन अत्यंत आवश्यक है। आर्य-मौन साधने के लिए:
- खुद मौन रहें
- कोई भजन या गीत न गुनगुनाएं, खुद से भी बात न करे
- अन्य साधक से बात न करें
- अन्य साधक या किसी भी व्यक्ति को न छुंए
- अन्य साधक की ओर न देखे (दृष्टि हमेशा नीचे ही रखें)
- अन्य साधक के साथ न चले (अकेले ही चलें)
- अन्य साधक के निवास पर न जाये
- सादे, साफ़ व हलके कपडे पहने
- जेवर, घडी आदि जिससे आवाज़ आए न पहने
- साधना के दौरान उँगलियाँ न चटकायें, हांत न रगड़े
- साधक व्यवस्थापकों द्वारा बनायीं गयी सीमा-क्षेत्र के अंदर ही रहें
अगर बीमार न हों तो प्रयास करे की ध्यान कक्ष व पगोड़ा में खुद की साँस से ज़्यादा आवाज़ न आए, इस प्रयास से आपके द्वारा अन्य साधको की साधना में कोई विघ्न नहीं होगा और आपका ध्यान भी पूर्णतः अपनी साधना में रहेगा।
शिविर के दौरान आप सिर्फ अपने आचार्य या बहुत ज़रूरी पड़ने पर शिविर में धम्म-सेवक/सेविका से बात कर सकते हैं।
साँस का सहारा ही क्यों ?
साँस निर्मल है, साँस के प्रति कोई व्यक्ति राग नहीं जगाता, द्वेष नहीं जगाता, कोई आसक्ति नहीं जगाता।
साँस आ रहा है तो कोई व्यक्ति यह नहीं कहता की साँस और-चाहिए और-चाहिए, इस प्रकार आती हुई सांस के प्रति कोई राग नहीं जगाता, ठीक इसी प्रकार जाती हुई साँस के प्रति कोई द्वेष नहीं जगाता की जल्दी-जा जल्दी-जा मुझे तू नहीं चाहिए। साँस निर्मल है इसीलिए साँस का सहारा।
साँस के निर्मल होने कारण मन उसके प्रति कोइ आसक्ति नहीं जगाता, और इस प्रकार साँस का सहारा लेकर जब मन एकाग्र होता है तो "जो जैसा है, वैसा है" देखने में और सक्षम हो जाता है।
मन को एकाग्र करने के लिए कोई शब्द जोड़ेंगे तो धीरे-धीरे शुद्ध साँस की जानकारी छूट जाएगी और देखेंगे की शब्द को बार-बार मन में दोहराते-दोहराते मन एकाग्र होगया.. वो शब्द प्रमुख हो गया और धीरे-धीरे उसी शब्द को लेकर मैं एकाग्र हो गया। और इस प्रकार मन उस शब्द को लेकर आसक्त होता जायेगा, इससे जो हमें अंतर्मुखी होकर अपने अंदर जाकर अपने विकारों की उत्पत्ति होने के कारण को अपनी अनुभूति से समझना था, उसका निवारण करना था.. वो काम रुक जायेगा, मुक्ति का मार्ग छूट जायेगा।
इसलिए सिर्फ शुद्ध साँस का सहारा।
शुद्ध साँस के साथ चलते-चलते अपने अंदर की सच्चाई उजागर होने लगेगी और अपने अनुभूति से उजागर होने लगेगी, हमारे अंदर के विकार कब कैसे और क्यों जागे इसकी सच्चाई अपने स्वयं की अनुभूति से मालून होने लगेगी और काम करते-करते इन विकारो का निवारण होता जायेगा।
अंतिम लक्ष्य व कठिनाइयाँ
मन को निर्विकार करना है, यही अंतिम लक्ष्य है।
चित्त को निर्विकार करने के लिए ताकि वो नितांत निर्मल हो जाये, इसके लिए चित्त की एकाग्रता सहायक होती है।
इसके लिए साँस का सहारा लेना है और साँस को जानने का काम करना है।
साँस को जानने के दौरान कोई दार्शनिक नाम, कल्पना, रंग.. आकृति.. रूप.. या इस रूप का ध्यान करके काम करेंगे तो काम आसान हो जायेगा और चित्त एकाग्र भी हो जायेगा पर ये अंतिम लक्ष्य नहीं है।
एकाग्रता एक साधन मात्रा है साध्य नहीं है। साध्य हमारे लिए चीत्त की निर्मलता है।
किसी भी प्रकार से मन को एकाग्र करने की कोशिश न करे सिर्फ साँस का सहारा लें।
साँस को शुद्ध रखना ह कोई नाम, कल्पना का चिंतन, मंत्र न जोड़ दे.. साँस की जानकारी रखना है बस।
कठिनाईयाँ तो आती ही है। कोई भी साधना या तप करें कठिनाइयाँ तो आयेंगी ही...
मन अपने एक स्वभाव शिकंजे में जकड़ा हुआ है। इसी तरह शरीर भी अपने एक स्वभाव शिकंजे में जकड़ा हुआ है.. और उसके दिनचर्या के विरूद्ध जो भी हम करना चाहेंगे वो विद्रोह करना शुरू करने लगेगा।
ये दस दिन घबराये नहीं, व्याकुल न हो बस शांत चित्त से साधना जारी रखें।
प्रतिदिन प्रवचन क्यों ?
साधना विधि को समझाने, उसके प्रति प्रेरणा जगाने क लिए प्रतिदिन साधना के बाद धर्म-चर्चा (प्रवचन) होता है।
विधि को समझेंगे ही नहीं, तो काम नहीं करेंगे और फिर शंकायें रहेंगी।
काम करेंगे भी तो जैसे करना चाहिए वैसे नहीं करेंगे, गलत तरीके से कर जायेंगे, तो इस विद्या से जो लाभ मिलने वाला है उस लाभ से वंचित रह जायेंगे।
इस विद्या को लेकर कोई शंका न रहे, कोई गलत धारणा न बना लें इसलिए भी प्रवचन ज़रूरी है।
साधक से अपेक्षित
शिविर में साधक दस दिन के लिए आते हैं तो पूरे समर्पण क साथ रहें और पूरा-पूरा लाभ लेकर जायें। ऐसा जाने की ये दस दिन तपने आएँ ह छुट्टी मनाने नहीं आएँ हैं। और तपने आएँ ह तो ठीक प्रकार से तपना भी है, जैसे तपना चाहिए उसी तरह से।
इस विद्या में अपने से कुछ न जोड़े और न कुछ घटाए, ये विद्या बोहोत नाज़ुक और शुद्ध है।
इसमें समिश्रण किया की यह विद्या अपना बल खो देगी, फिर इससे जो लाभ मिलना चाइये वो लाभ नहीं मिलेगा, और जब लाभ नहीं मिलता तो लोग इसका अभ्यास छोड़ देते हैं। इसलिए विपश्यना को ठीक तरीके से समझना बहुत ज़रूरी है।
- समय-सारणी का कड़ाई से पालन करें
- आर्य-मौन का भी कड़ाई से पालन करें
- साधक व्यवस्थापकों द्वारा बनायीं गयी सीमा-क्षेत्र के अंदर ही रहें
- धूम्रपान, नशीली वास्तु का प्रयोग न करें
- भोजन-कक्ष में भोजन व नाश्ता हेतु समय से पहुँचे
- खाना कम भी न खाये और ज़्यादा भी न खाएं, कम खाने से कमज़ोरी व ज़्यादा खाने से खूब नींद आती है। साधना के लिए अपनी भूख का तीन-चौथाई(3/4) ही खाना श्रेष्ठ है
- शिविर में कोई पूजा-पाठ, दार्शनिक/पारम्परिक कर्म-काण्ड न करें
- किताबें, रेडियो, टेप रिकॉर्डर, कैमरा, मोबाइल का इस्तेमाल न करें व इन्हें शिविर में जमा करा दे
- पूरे कपड़े पहनें, जेवर या अन्य कोई पहनावा जिससे किसी भी प्रकार की आवाज़ आए उसे पहनने से बचें
- अगर साधक को कोई मानसिक या शारीरिक कठिनाई हो या वह दवाइयों का सेवन कर रहा हो तो पहले दिन ही आचार्य से मिले और आचार्य की अनुमति से ही दवाइयॉं लें
- अगर व्यवस्था या अन्य किसी चीज़ को लेकर शिकायत हो तो भोजन-कक्ष में रखे रजिस्टर में लिखकर व्यवस्थापकों को इसके जानकारी अवश्य दें
- नोट: शिविर की व्यवस्था साधकों(पुराने) के द्वारा दिए गए दान से ही होती है अतः आपका रचनात्मक सहयोग अपेक्षित है
- सबसे पहले सबसे सुविधाजनक आसान ग्रहण कर लें
- सामने की ओरे देखे, आँख और होंठ शाँति से बंद कर लें
- सर झुका न हो, गर्दन और पीठ सीधी रहे
- साधना-कक्ष में समय पर पहुँचे
- साधना के दौरान होश बना रहे
- खूब सजग रहे, साँस के प्रति खूब सावधान रहे
- बहुत ज़रूरी है की आर्य-मौन बनाये रखे
- साँस की जानकारी की दिशा हमेशा स्थूल से सूक्ष्मता की ओर होनी चाहिए।
- हमे मन को सूक्ष्म बनाना है, इस प्रकार मन को जितने छोटे स्थान पे रखेंगे, और उस छोटे से स्थान पर जितना देर काम करेंगे मन उतना सूक्ष्म होता जायेगा
- मन जब शरीर की यात्रा करता है तो बंद आँखों की पुतलियाँ उसका अनुकरण न करें इसका भी विशेष ध्यान दें, पुतलियाँ स्थिर रहें
- दिन-प्रतिदिन प्रवचन और भी ध्यान से सुने और इस विद्या को और अच्छे से समझे
- घबराये और व्याकुल बिलकुल भी न हो, ऐसा होने पर आचार्यजी से (दिए गए समय पर ) ज़रूर मिलें
- निरंतरता, दृढ़ता और धीरज व समझदारी के साथ काम करते रहे, सफलता अवशय मिलेगी
विपश्यना शिविर में सम्मलित होने व उसके आरक्षण या अन्य संबंधित विवरण के लिए www.dhamma.org पर जाएं।
"भवतु सब्ब मंगलम"
Superb
ReplyDeleteGood 👍
ReplyDeleteइस ब्लॉग लिखने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई हो
ReplyDeleteThanks a lot for putting up this blog.. keep up the good work!!
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