Day 2
Are you an old student of Vipassana?
कार्यावली
दूसरे दिन साँस के आवागमन के साथ साथ साँस के स्पर्श की जानकारी रखना सिखाते है।
विशेष रूप से नाक और होंठ के ऊपर(मूछो) वाले स्थान(इस पूरे त्रिकोण-क्षेत्र) पर जानेंगे की साँस आ और जा तो रहा है, पर साथ साथ यह भी जानेंगे की अंदर और बाहर जाने वाला साँस इस छोटे से स्थान में छूता कहाँ कहाँ है।
हमे मन को सूक्ष्म बनाना है, इस प्रकार साँस की जानकारी की दिशा हमेशा स्थूल से सूक्ष्मता की ओर होनी चाहिए।
मन को जितने छोटे स्थान पे रखेंगे, और उस छोटे से स्थान पर जितना देर काम करेंगे मन उतना सूक्ष्म होता जायेगा।
शिविर के पहले तीन दिन जो भी हम सीखते है उसे आनापान कहते है।
आनापान करते समय यदि शारीरिक कष्ट के कारण आसन में परिवर्तन करना पड़े, तो कर लें। पर जब भी आसन परिवर्तित करें, साँस थोड़ा तीव्र कर दें; और जैसे ही पुनः किसी सुविधाजनक आसन ग्रहण करें, पुनः स्वाभाविक साँस का साक्षी भाव से अनुभव करें।
अनुदेश
- साधना में बैठकर, अपने मन को इस नाक और होंठ के ऊपर(मूछों) वाले स्थान पर लगाकर साँस की जानकारी रखेंगे
- साँस का आवागमन दायीं या बायीं नासिका या दोनों नासिकाओं से हो रहा है जानकारी रखेंगे
- साथ ही साथ ये भी जानेंगे की इस पूरे त्रिकोण-क्षेत्र में साँस छूता कहाँ कहाँ है- नाक के अंदर, नाक के छल्लो पर व नाक के नीचे और होंठ के ऊपर छूता कहाँ है
- साँस चाहे बहुत अंदर जाये पर इसी त्रिकोण-क्षेत्र में साँस को जानना है
- इस दौरान किसी कल्पना का साथ नहीं लेना, स्वाभाविक साँस पर ही काम करना है, और जो भी अनुभव में उतरे, अपनी अनुभूति में उतरे उसे क्षण प्रति-क्षण साक्षी भाव से जानते रहना है
- ससाँस मालूम न होती हो तो थोड़ा देर के लिए साँस तेज कर लें। फिर वापस सहज स्वाभिक साँस पर वापस आ जाएं और साँस को जानना शुरू कर दें
- अगर यह मालूम पड़ जाये की मन भटक गया है तो इस पर व्याकुल न हो, नहीं तो काम रुक जायेगा। बस यह जाने की इस क्षण की यह सच्चाई है की मन भटक गया, ये जाने की "जैसा है वैसा है" और जैसे ही होश आये मन को वापस साँस पर ले आएं
- पूरा दिन बड़े धीरज के साथ बारीकी से जानकारी बनाये रहेंगे, और स्थूल से सूक्ष्म और सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की ओरे जाते जायेंगे
प्रवचन
प्रवचनॉंश
- जल्द ही उपलब्ध किया जायेगा
शब्दावली
अनुभूति | बोध, महसूस |
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