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अस्वीकरण
इस ब्लॉग के द्वारा दृश्यों, चलचित्रों अथवा शब्दों के माध्यम से दर्शाये गए कोई भी निर्देश एवं अन्य जानकारी केवल (सयाजी उ बा खिन की परंपरा में आचार्य गोयन्काजी अथवा उनके किसी सहायक आचार्य द्वारा सिखायी गयी) विपश्यना के पुराने साधक/साधिकाओं हेतु प्रकाशित किया गया है।
हम नए लोगों से अनुरोध करते हैं कि इस ब्लॉग के माध्यम से घर पर विपश्यना सीखने और उसका अभ्यास करने का प्रयास न करें।
अपितु, नए लोग जो भी इस विद्या को सीखना चाहते हैं वे अनिवार्य रूप से विपश्यना के किसी मान्यता-प्राप्त केंद्र/गैर-केंद्र पर आचार्य गोयन्काजी के किसी सहायक आचार्य के पर्यवेक्षण में ही विपश्यना सीखें। अधिक जानकारी हेतु www.dhamma.org देखें।

Disclaimer
The instructions and other information in Vipassana shared in this blog in the form of picture, video or text are entirely meant for old students of Vipassana (taught by S.N. Goenka or any of his assistant teachers, in the tradition of Sayagyi U Ba Khin).
We urge to all those who are new to Vipassana not to learn or practice Vipassana at home, on the basis of the content of this blog.
Instead, it's incumbent on the new people to attend and learn it under the supervision of any of the assistant teachers of Vipassana at a recognized centre/non-centre. Please visit www.dhamma.org for more information.

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Vipassana

विपश्यना संकल्प का मार्ग है। यह भारत की बहुत पुरानी विद्या है, पर लोगों को नयी नयी सी मालूम होती है। ये विद्या बार-बार भारत मे जागी है, और न केवल भारत के लोगो का बल्कि पूरे विश्व के लोगो का कल्याण की है। विपश्यना जो जैसा है उसे वैसा ही देखने की विद्या है। विपश्यना भीतर की सच्चाई को जानने के लिए है। मन के गहराइयो में जाकर मन के विकारो को निकाल दे, ये सारा रास्ता इसी के लिए है। साधना के दौरान 'होश बना रहे' इस विद्या को सीखने की इकाई है। धैर्य, सजगता, निरंतरता आदि विद्या सीखने में बहुत सहायक है। मनुष्य विकार जगाता है और व्याकुल हो जाता है   वह अपने आप को विकार से दूर रखने के लिए कोई अच्छी बात को मानने लगता है, उसका अनुसरण भी करता है। पर किसी अच्छी बात को मानने से बस ऊपर ऊपर की सफाई होती, गहराई में स्वभाव वैसा ही रहता है। अपने अंदर की क्या सच्चाई है उसको अनुभूतियों से जाने और जानते-जानते अपने विकार-युक्त स्वभाव को पलटने लगे, इस प्रकार अपने विकारो को जड़ो से निकलने लगे.. यही विपश्यना है, और यही करना है। इसके लिए स्वयं काम करना होगा, इस मा

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